आदि काल से ही प्रकृति ने मानव सभ्यता की मूलभूत आवश्यकता के साथ रहन-सहन एवम चिंतन प्रक्रिया को भी प्रभावित किया है | इसके चलते मानव इन्द्रियाँ पहले से अधिक सक्रिय होती गयी| अब मनुष्य किसी भी वस्तु, फल ,सब्जी को सूंघ कर उसके अच्छे और ख़राब होने की स्थिति पता लगा लेता था | इस ज़रूरत ने मानवीय गंध-इन्द्रिय को और सक्रिय बना दिया| अब अच्छी खुशबु के लिये वो फूल -फल,जड़ीबूटियां, मसाले का सहारा लेने लगा और इनकी खुशबु को ज्यादा देर तक संगृहीत रखने के लिये प्राकृतिक और रासायनिक प्रक्रिया अपनाने लगा | मानव की ऐसी चाह ने इत्र के अस्तित्व को जन्म दिया |
मुख्यता इत्र 2 प्रकार के होते है |
1 प्राकृतिक इत्र |
2 रासायनिक इत्र |
प्राकृतिक इत्र का मूल स्त्रोत फूल , फल, मसाले होते है जिन्हें जड़ीबूटियों एवम खनिज की सहायता से उबाल कर, मिला कर, धुँआ दे, खमीरीकरण कर, खुशबु को ज्यादा देर तक संगृहीत किया जाता है | इसप्रकार से फूल, फल, मसाले का सत्व निकाल सुगंध को धातु, लकड़ी, शीशे की बोतल में संगृहीत किया जाता है | ऐसेमें इत्र के औषधीय गुणों में भी वृद्धि होती है,खुशबु और स्वस्थ पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | प्राकृतिक इत्र बिना अल्कोहल का होता है | ये मुख्यतः तरल, रोल-ऑन और आजकल स्प्रे में भी उपलब्ध है | ये थोडे मेहेंगे होते है 5ml, (5ml - 50 रु से शुरू से होकर) 1000ml(10,00,000 तक)में मिलते है |
रासायनिक इत्र का मूल स्त्रोत रसायन एवम अप्राकृतिक पदार्थ है, इसमे रासायनिक तरल पदार्थो का कई गहन -प्रक्रिया, उच्च-तापमान,गैसों के सम्मिश्रण, और वाष्पीकरण बाद सुगंध को संगृहीत किया जाता है | ये सुंगंध में तो अच्छी होती है, पर इस्तेमाल करने पर पार्श प्रभाव (साइड -इफ़ेक्ट) होता है मसलन जुकाम, सिरदर्द या अन्य कोई अलेर्जिक परेशानी| इनके प्रयोग में अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है | ये थोडे सस्ते होते है 5ml, (5ml - 15 रु से शुरू से होकर) 250ml(100,000 रु तक ) में उपलब्ध है| पर इनकी खुशबु का सीमित प्रयोग करना चाहिये|
इत्र की उपदेयता-
1 सुगंध का सरलतम विकल्प |
2 शारीरिक - मानसिक रोगों में उपचार हेतु प्रमुख घटक |
3 दुर्गन्ध दूर करे |
4 रोगों, शुष्म परजीवी और जीवाणु से दूर रखे|
5 थकान मिटाये और नसों को आराम दें |
6 मांसपेशियों को निर्बाध संचलन कर सुचारू बनाये रखे |
7 तनाव दूर कर खुशनुमा अहसास के साथ आपको रहत दे|