आपने टैटू के ट्रेंड के बारे में देखा-सुना होगा, मुमकिन है आजमाया भी हो...लेकिन क्या आपने कभी इस टैटू को देखा है. यह टैटू दुनियाभर में वायरल हो गया है. दिलचस्प बात यह है कि कुछ खास किस्म के लोग ही इसे आजमा रहा हैं.
यह टैटू आप उन लोगों की बाहों पर देखेंगे जो या तो नशे और डिप्रेशन में डूबे रहे या जिन्हें कभी सूइसाइड करने का ख्याल आया. इस टैटू का प्रचार सेमीकॉलन प्रॉजेक्ट के तहत किया जा रहा है, ताकि लोग समझ सकें कि उनकी जिंदगी में कितना बदलाव आया है.
कई ब्लॉग पोस्ट्स में बताया गया है कि सेमीकॉलन का इस्तेमाल वाक्य में ऐसी जगह किया जाता है जहां वाक्य खत्म हो सकता था लेकिन खत्म नहीं हुआ. यही सोच सेमीकॉलन प्रॉजेक्ट के पीछे भी है. जिन लोगों को जिंदगी किसी मोड़ पर खत्म हो सकती थी लेकिन नहीं हुई, वे इसे टैटू को अपने हाथ पर बनवा रहे हैं.
दरअसल, इस अभियान की शुरुआत 2013 में एमी ब्लूअ ने अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए की थी, जिन्होंने सूइसाइड कर लिया था. एमी ने प्रॉजेक्ट सेमीकॉलन की वेबसाइट बनाई, लेकिन इसे सोशल मीडिया पर जबर्दस्त सपॉर्ट हासिल हुआ है.
एमी का मानना है कि यह टैटू लोगों को याद दिलाता है कि उन्होंने मौत की जगह जिंदगी को चुना है और उन्हें अब एक अच्छी जिंदगी गुजारनी है. इस अभियान में शामिल होने के लिए के लिए उन्हें किसी भगवान में आस्था रखने की जरूरत नहीं है.
एमी की बातों का असर कुछ ऐसा हुआ है कि प्रॉजेक्ट सेमीकॉलन के ट्विटर अकाउंट पर भी तीन हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और यह संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. फेसबुक, यूट्यूब और गूगल प्लस के जरिए भी यह प्रॉजेक्ट ज्यादा से ज्यादा लोगों को जीने का मकसद और हौसला दोनों दे रहा है.