माना जाता है कि आयुर्वेद में त्वचा के सात स्तर बताये गये हैं. ये स्तर जब शरीर के असंतुलित दोषों से प्रभावित होते हैं तो त्वचा पर कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है.
त्वचा के ये सात स्तर हैं
अवभासिनी
इसे त्वचा की सबसे पहली और ऊपरी परत मानी गयी है जो सभी वर्णों को प्रकट करती है. इस स्तर में दोष आने के फलस्वरूप त्वचा पर कील-मुहांसे निकल आते हैं.
लोहिता
त्वचा की दूसरी परत मानी जाने वाली लोहिता है. लोहिता परत में दोष होने के कारण तिल, काले घेरे, काले धब्बे आदि निकलते हैं.
श्वेता
यह त्वचा की तीसरी परत है जिसमें दोष के कारण त्वचा के रोग जैसे एक्जिमा और एलर्जिक रैशेज त्वचा पर दिखने लगते हैं.
ताम्र
त्वचा की चौथी परत मानी जाने वाली ताम्र है। इसमें दोष के परिणामस्वरूप कुष्ठ की बीमारी होती है/
वेदनी
त्वचा के इस पांचवे स्तर में दोष होने से लाल निशान/धब्बे की बीमारी होती है.
रोहिणी
यह त्वचा का छठी परत है. इस स्तर में रक्त वाहिनियां, नाड़ी सूत्र और धातु होते हैं. इस स्तर में दोष होने से ग्लैंड ट्युमर और हाथीपांव की बीमारियाँ होती है.
मांसधरा
यह त्वचा की सातवीं परत मानी जाती है. इसमें रोम कूप, तेल-ग्रंथि और पसीना-ग्रंथि होती है. इस परत में दोष होने से भगंदर और अर्श आदि बीमारियाँ होती है.